Saturday, November 21, 2015

जारी है...

                                                         
वक्त बदल गया है, अब भी मैं विद्यार्थी हूं लेकिन किसी स्कूल, कॉलेज का नहीं... विद्यार्थी हूं जिसे जीवन रोज़ नए सबक सीखा रहा है... सच है कि विद्यार्थी जीवन का कोई मोल नहीं...खैर
लोग कहते थे कि शादी के बाद पति-पत्नी पर नयी ज़िम्मेदारियां आती हैं, जो कि मैं नहीं मानता था, लेकिन दिन-ब-दिन मुझ पर एक पहाड़ सा बनता जा रहा है जो कब टूटेगा पता नहीं, रोज़ नयी चुनौतियां, रोज़ नए काम! अंत ही नहीं होता..ह..
जिस बिजली के बिल को मैंने कभी देखा नहीं था, अब हर महीने उसका भुगतान मेरे कंधों पर है... आलू-टमाटर खाया तो बहुत था लेकिन किस कीमत पर खा रहा हूं अब समझा... शॉर्ट में आटे-दाल का भाव मालूम हो गया...ह...
लेकिन मैं पीछे नहीं हटा हूं, ज़िम्मेदारियों से, चुनौतियों से...
 
जारी रहेगा...

Sunday, April 5, 2015

मरते किसान, सोती सरकार

सच है कि देशभर में बेमौसम बारिश ने फसलों को भीषण नुकसान पहुंचाया है। जायज़ है कि फसलों की बर्बादी किसानों पर पहाड़ बनकर टूट रही है। सच है कि पीएम मोदी ने हमेशा किसानों का शुभचिंतक बनकर उनके लिए हर संभव मदद की बात कही। लेकिन सच तो ये है कि इस मुश्किल वक्त में अपनी पीड़ा तो किसान को ही पता है। कोई किसान आत्महत्या तो कोई किसी कोने में बैठकर रो-रोकर ये सोच रहा है कि वो अपनी बहन, बेटी या बच्चों की पढ़ाई का खर्च कैसे उठाएगा। दुखद है कि नई सरकार से नई उम्मीदें धरी की धरी रह गई हैं। कहीं किसानों को 2100 रुपए का मुआवज़ा दिया जाता है तो कहीं 2900 रुपए। सरकार में बैठे लोग क्या इस बात से अंजान हैं कि चंद रुपए किसानों की पीड़ा को थोड़ा भी कम नहीं कर पाएंगे। ऐसे सरकारी फैसलों से तो ये ही साबित होता है कि जिन किसानों ने खुदकुशी की, उनका फैसला ठीक था। क्योंकि कोई किसान भूखा ज़रूर रह सकता है लेकिन अपने परिवार को भूखा नहीं देख सकता...

Saturday, December 28, 2013

मेरी प्रवृत्ति...

सच में स्वतंत्र रहने का मन करता है...मेरे जीवन में कई बार ऐसी घटना हुई है जब मैंने रिश्ते रुपी कई बंधन अपनी स्वतंत्रता के लिए कुर्बान कर दिए हैं...वो रिश्ते जो खुद मेरे बनाए हुए थे...वो रिश्ते जो लोगों के साथ मेरे विश्वास के चलते पनपे थे...लेकिन मेरी 'स्वतंत्रता प्रधान' प्रवृत्ति कई बार मेरी दुश्मन तो कई बार परम मित्र साबित होती है...मेरे साथ के लोग ये नहीं समझ पाते कि आखिर उनकी गलती क्या है...मैं उनसे क्यों नहीं बात करता...लेकिन ये मन बिना किसी से किसी भी तरीका का गिला-शिकवा किए एक अलग रास्ते पर निकल जाता है...जिससे लोगों को मैं पराया सा लगता हूं...उस रिश्ते की टूटन में दर्द मेरा दिल भी बराबर से झेलता है लेकिन मेरी आदत...ये आदत...कई बार इस बात को महसूस करता हूं कि कहीं ये आदत किसी दिन मेरे किसी अति प्रिय शख्स को मुझसे हमेशा के लिए अलग न कर दे...

Monday, December 31, 2012

वक्त मिले तो जरूर पढ़ियेगा...


 शब्द ज्यादा हैं शायद आप पढ़ें न, लेकिन पढ़ियेगा तो कमेंट जरूर दीजियेगाआभारी रहूंगा...

                       कैसे रुके बलात्कार की घटनाएंआखिर कैसे?
                       क्या वजह हो सकती है इन घटनाओं की?

अशिक्षित होना...माफ कीजियेगा शिक्षित वर्ग में भी आए दिन ऐसे मामले सामने आते हैं, अमीर होनामाफ कीजियेगा गरीब वर्ग में भी ये बातें आम हो चली हैं?,
मवाली होनाफिर शरीफ लोग कैसे इन मामलों में फंसते हैं?

किसके चेहरे पर लिखा है कि उसके अंदर की हैवानियत जागने वाली है या कब जाग जाएगी? मामला शिक्षित-अनपढ़, अमीर-गरीब, बड़े-छोटे, शराफत-मवालीगीरी से बहुत आगे बढ़ गया है...दोस्तों सच कहूं तो ये संकीर्ण विचार हमारे अंदर आपसी बातों से उपजते हैं...
(मसलन- एक महाशय अपने मित्र से कहते हैं कि आप जब स्त्रियों संबंधी विषयों पर बात नहीं कर सकते तो जीवन में क्या करेंगे...)
सच में दोस्तों ऐसी घृणित मानसिकता आगे चल कर किस लड़की, महिला या बच्ची को अपना शिकार बना ले...कहना मुश्किल है...ऐसे विचारों से हमें दूरी बनानी ही होगी...

पुलिस या सरकार को भी सीधे इन घटनाओं के लिए ऐसे दोषी मान लिया जाता है जैसे कि स्कूल में अपने बच्चे की गलती का भुगतान किसी न किसी रूप में उसके माता-पिता को भी भुगतनी पड़ती है...

बड़ा सवालः अगर रेप की कोई घटना हमारे सामने घट रही हों तो क्या हम इसे रोकने की कोशिश करेंगे?...बताइये क्या कोशिश करेंगे?...क्या लड़की की चीख हमारे कानों से होते हुए हमारे शरीर को उस अत्याचार का विरोध करने के लिए मजबूर करेगी? सटीक शब्द नहीं मिलते क्या लिखूं...चन्द शब्दों से यहां अपनी बात को पूर्ण विराम देता हूं कि...

               बाहरी आंदोलनों से जीतना अब मुश्किल हो चला है...
                  खुद में चल रहे आंदोलन को जीत सको तो जीत लो...

Tuesday, November 6, 2012

'मेरा प्रिय ईश्वर'



था छोटा जब मैं, तो लगा कोई बुलाता था...
तब आंचल में ये जीवन मैं खोए-खोए बिताता था,
था 'किशोर' जब मैं, तो लगा कोई बुलाता था...
तब गेंद-बल्ले और किताबों में सोच लगाता था...
था जवान जब मैं, तो भी लगा कोई बुलाता था...
लेकिन रोटी-तेल-नोन में सिमट कर रह जाता था...    
था बूढ़ा जब मैं, तो लगा कोई बुलाता था...
बिस्तर पर पड़े हुए तब बच्चों की चिंता सताती थी,
शरीर से जब प्राण निकले, तो समझा कि वो कौन था,
जो आजीवन मुझ मूर्ख को अपनी ओर बुलाते रहे...
मैं अज्ञानी अब समझा उसकी इस पुकार को...
उनको ही था भूला, जिसने दिया मुझे वो शरीर था...
मुझे जिंदा रखने वाला केवल और केवल
             'मेरा प्रिय ईश्वर था'

Tuesday, October 30, 2012

' मैंगो मैन' का सवाल


                                                         ' मैंगो मैन'  का सवाल

यूपीए-2 ने पूरे देशवासियों के साथ क्या-क्या किया, ये किसी से छिपा नहीं है..जिसे आम जनता कहा जाता है, उसके तो खून के आंसू भी निकल कर सूख गए, जबकि उच्च वर्ग के लोगों ने मध्यम वर्गीय न होने के लिए ईश्वर का शुक्रिया अदा किया...निम्न वर्ग की तो पूछो ही मत...यूपीए-2 पर आरोप लगे कि उसने आकाश, जमीन और पाताल में भ्रष्टाचार का खेल खेला है...लेकिन पता नहीं क्यों जनता के सामने पर्दाफाश होने के बावजूद इन मंत्रियों की आखों में जरा भी पछतावा नहीं...खैर, प्रधानमंत्री 2014 में जीत (जो कि इस सरकार के लिए नामुमकिन लगती है) के रास्ते तलाश रहे हैं...उनका नाम आगे रख कर मिशन 2014 फतह करने की कोशिश में रणनीति के मुताबिक तुरुप का इक्का फेंका गया है- मंत्रिमंडल में फेरबदल करके...
 समझ से परे हैं इतने सालों से आरोप लगने के बावजूद नए चेहरों को लाने में इतना समय कैसे लगा? क्यों उन सात मंत्रियों ने फेरबदल से ठीक पहले अपना इस्तीफा सौंप दिया, ये इस्तीफे उस वक्त क्यों नहीं सौंपे गए जब सरकार पर रोज़ाना नए-नए आरोप लगाए जा रहे थे...जनता के विश्वास का कत्ल करने में क्या सत्ता और क्या विपक्ष सबने भूमिका निभाई...न जाने कितनी बार राजनीति का व्यापारीकरण किया गया...आम नागरिक होने के नाते इस निरुत्तर सरकार से उस एक-एक पैसे का हिसाब मांगते हैं जो हमनें कभी अपना फर्ज समज कर दिए तो कभी मजबूरी समझकर..क्या आ पाएगी कोई ऐसी नीति जिससे जनता द्वारा कितना टैक्स जमा हुआ, वित्त मंत्रालय से कितने पैसे कहां खर्च हुए, किस योजना के लिए केंद्र किस राज्य को कितनी रकम दे रहा है...ये सभी बातें आम आदमी को पता चल सके...जनलोकपाल तो नहीं ला पा रहे...कम से कम इतनी जानकारी तो दे दो...गैस सिलेंडर का नया कनेक्शन लेने के लिए तो पूछताछ ऐसे की जाती है जैसे गैस कनेक्शन नहीं बल्कि एफआईआर दर्ज करानी हो...भूखों मर जाओ पर 6 से ज्यादा सिलेंडर नहीं ले सकते...हर चीज की अनाव्शयक कीमत लगा दी गई है, अब हम यानि की 'मैंगो मैन' पूछता हैं कि कोई ऐसी नीति है, जिससे हमें संतुष्टि भरा जवाब और हिसाब दिया जा सके... हिम्मत है हिसाब देने की...बोलें....

दोस्तों शायद ही कोई जवाब मिले लेकिन मेरे इस तुच्छ लेख को कोई सत्ताधारी मंत्री साहब पढ़ेंगे तो शायद इन दिनों उनके विचार कुछ ऐसे हों..............कि
हमारी जनता कभी न कुछ कह पाएगी,
आंसुओं को अपने बस पोंछती रह जाएगी,
खुल कर पैसे बटोरो यहां, भनक न लगने पाएगी,
अरे 6 की जगह 3 सिलेंडर भी कर दो,
 तो भी बस छटपटा कर रह जाएगी,
हममें और विपक्ष में से कोई न कोई तो आएगी,
जब विपक्ष यही रंग दिखाएगा,
तो खुद हम तक चल कर आएगी,
ज्यादा नहीं ,बस एक बोतल की बात है,
फिर देखो, कैसे दौड़ी-दौड़ी वोट देने जाएगी,
 हमारी जनता..............

Sunday, January 22, 2012

ये कैसे विचार हैं ?

अब हिम्मत के सामने ये शरीर थकने लगा है
हार न मानने की फितरत खत्म होने को है
आंखों में नींद लेकर जाना चाहता हूं घर पर
रास्ते में आंख झपकना खतरा मालूम होता है
बुद्धि पता नहीं कब तक साथ दे
आखिरी हथियार न जाने कब साथ छोड़ दे
सोच-विचार करने की जिम्मेदारी से मुक्त करो मुझे
किस नगर किस डगर किस पहर कहां जाउं
बंधी सी मालूम होती है ये ज़िन्दगी
हंसना अब ऊपरी दिखावा ही रह गया है
दिल से हंसना अभी सीखना बाकी है
मतलब समझना ही जरूरी नहीं किसी बात का
जाने दिया जाए तो फ़ायदे में रहने की आदत डाल लो...